
gmedianews24.com/चित्रकूट। पद्म विभूषण जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य ने संत प्रेमानंदजी के संस्कृत ज्ञान पर सवाल उठाए थे, जिसके बाद उन्हें आलोचना का सामना करना पड़ा। इस पर ‘दैनिक भास्कर’ से खास बातचीत में उन्होंने अपने ऊपर लगे आरोपों पर खुलकर जवाब दिया।
रामभद्राचार्य जी ने कहा कि “स्वभाव बताना अहंकार नहीं होता। मैंने जीवन में कभी अहंकार किया ही नहीं। अगर किसी को पुरस्कार मिला है तो यह गर्व करने की बात नहीं, बल्कि स्वभाव की अभिव्यक्ति है।’’ उन्होंने कहा कि जो लोग उन्हें अहंकारी कहते हैं, वे स्वयं कभी अवॉर्ड नहीं पा सके हैं।
भगवान कल्कि के अवतार पर विचार
जगद्गुरु ने कहा कि भगवान कल्कि का अवतार संभल में ही होगा, लेकिन वहां की स्थिति आज बेहद दयनीय है। हिंदुओं का पलायन हो रहा है और सरकार को इसे रोकने के लिए कदम उठाने चाहिए। उन्होंने कहा कि कलियुग अभी लंबा है—कुल 4 लाख 32 हजार वर्षों में से अब तक केवल 5,252 साल ही बीते हैं।
निंदा और विरोध में अंतर
स्वामी रामभद्राचार्य ने कहा, “मैंने कभी किसी संत की निंदा नहीं की। निंदा का अर्थ है – दोष न होते हुए भी दोष बताना। जबकि मैं केवल तब विरोध करता हूं जब कोई गलत काम करता है। विरोध करना निंदा नहीं कहलाता।”
उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि रामचरित मानस के युद्धकांड में रावण ने राम जी की निंदा की थी, जबकि वह तथ्यात्मक रूप से गलत था। उसी तरह, वे केवल तथ्यों के आधार पर अपनी बात रखते हैं।